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“तेजस्वी बनाम नीतीश : घोटालों की गूंज में बदलता बिहार का चुनावी नैरेटिव”

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मोहम्मद आलम

बिहार विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे करीब आ रहे हैं, भ्रष्टाचार का मुद्दा सियासी केंद्र में आ गया है। अब तक प्रशांत किशोर (पीके) इस एजेंडे को हवा दे रहे थे, लेकिन रविवार को हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में तेजस्वी यादव ने भी साफ कर दिया कि आने वाले दिनों में उनकी चुनावी राजनीति इसी धुरी पर घूमेगी।तेजस्वी ने आरोप लगाया कि बिहार में ऐसा कोई विभाग नहीं बचा है जहां भ्रष्टाचार न फैला हो। उन्होंने कहा कि अफसरों की पूरी फौज नेताओं के संरक्षण में मलाई काट रही है और करोड़ों की हेराफेरी हो रही है। यहां तक कि इंजीनियरों और बाबुओं के ठिकानों से करोड़ों बरामद होने के बावजूद कार्रवाई नहीं हो रही। तेजस्वी का दावा है कि उनके पास ऐसे भ्रष्ट अफसरों और नेताओं की लिस्ट मौजूद है और समय आने पर वह खुलासा करेंगे।पीएम मोदी ने स्वयं कभी बिहार के 31 घोटाले गिनाए थे, लेकिन तेजस्वी सवाल उठाते हैं कि अब जब उन्हीं की सरकार है तो कार्रवाई क्यों नहीं हो रही?राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यह कदम आरजेडी की रणनीति में बड़ा बदलाव दिखाता है। अब पार्टी जातीय समीकरणों के पार जाकर एंटी-इनकम्बेंसी और सुशासन बनाम भ्रष्टाचार की बहस को चुनावी नैरेटिव बनाना चाहती है। यही वह लाइन है जिस पर पीके पहले से ही चल रहे थे, और अब तेजस्वी भी उसी सुर में सुर मिलाते दिख रहे हैं।हालांकि, तेजस्वी के लिए यह दांव दोधारी तलवार है। भ्रष्टाचार पर हमला बोलने वाले तेजस्वी खुद लैंड-फॉर-जॉब केस से लेकर मनी लॉन्ड्रिंग तक कई मामलों में घिरे हैं। उनके पिता लालू प्रसाद यादव चारा घोटाले में सजा काट चुके हैं और परिवार पर कई मुकदमे अब भी अदालतों में लंबित हैं।यानी बिहार की चुनावी जंग इस बार केवल जातीय समीकरणों या वादों पर नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार बनाम सुशासन की धारदार बहस पर टिकने जा रही है। सवाल यही है कि जनता तेजस्वी को पीके की राह का साथी मानेगी या पुराने आरोपों के बोझ तले उनकी बातों पर भरोसा करने से कतराएगी।

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